Thursday 10 September 2015

साधो, हरि-पद कठिन कहानी

साधो, हरि-पद कठिन कहानी।
काजी पण्डित मरम न जानै,
कोइ-कोइ बिरला जानी॥
अलहको लहना, अगहको गहना,
अजरको जरना, बिन मौत मरना।
अधरको धरना, अलखको लखना,
नैन बिन देखना, बिनु पानी घट भरना॥
अमिलसूँ मिलना, पाँव बिन चलना
बिन अगिनके दहना, तीरथ बिन न्हावना।
पन्थ बिन जावना, बस्तु बिनु पावना,
बिन गेहके रहना, बिना मुख गावना॥
रूप न रेख, बेद नहिं सिमृति,
नहि जाति बरन कुल-काना।
जन 'दरिया' गुरुगमतें पाया,
निरभय पद निरबाना॥

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