Friday 16 December 2022

जीवन चरित्र:- स्वामी श्री बलरामदासजी महाराज

॥ श्री राम ।। 

जीवन चरित्र:- स्वामी श्री बलरामदासजी महाराज

संसार में समय समय पर लोकोत्तर महापुरुषों का आविर्भाव होता रहता है । कोई जाति, कोई धर्म, कोई देश, कोई काल, ऐसा नहीं है जिसमें ऐसे महापुरुषों का आविर्भाव नहीं हुआ हो। प्राचीन काल से लेकर आज तक के काल में न मालूम कितने वैभवशाली आदर्श महापुरुष अवतीर्ण हो चुके ! न मालूम भविष्य में और कितने होंगे ।

मानव समुदाय का जो कुछ महत्त्व आज है या भविष्य में रहेगा ! वह ऐसे ही महान् पुरुषों के पुरुषार्थं का फल है । ऐसे महापुरुषों की गिनती में परम पूज्य भूतपूर्व आचार्य श्री शास्त्री बलरामदास जी महाराज थे । पूज्य श्री शास्त्री जी महाराज का जन्म विक्रम सं. १६६४ मिगंसर सुदि एकादशी को ग्राम असावरी जिला नागौर पवित्र दाधीच ब्राह्मण कुल में हुआ | आपके माता का नाम जमुनाबाई एवं पिता का नाम श्री जयदेव जी हैं। जब आप बाल्यावस्था में थे, उस समय आपका शरीर शान्त हो गया था, और मृत शरीर को स्मशान में ले जाया जा रहा था। घर वालों की रोने की आवाज सुन-कर रेण सम्प्रदाय के संत श्री गुलाबदास जी महाराज ने जीवन दान देकर के रेण में दीक्षित होने की प्रेरणा दी। इन्हीं महात्मा की दिव्य प्रेरणा से सात वर्ष की अवस्था में आचार्य श्री क्षमारामजी महाराज से वि० सं० २००१ में गुरु दीक्षा प्राप्त की । आप बाल्यकाल से ही विद्या अध्ययन में रूचि रखते थे, विद्या अध्ययन में दक्षता देख के आचार्य श्री क्षमारामजी महाराज ने झोंकर थम्बा के साधु आनन्दरामजी के संकेत से आपको विद्याध्ययन के लिये आकोला भेज दिया । आकोला में राधाकृष्ण तोषनीवाल पाठशाला में संस्कृत लघु- सिद्धान्तकौमुदी आदि ग्रन्थों का अध्ययन तीन वर्ष तक करके श्री सीताराम पारिक संस्कृत विद्यालय, इन्दौर में (म.प्र.) संस्कृत के आदर्श ग्रन्थों का अध्ययन करने के पश्चात् विश्वनाथ की महान् नगरी वाराणसी में स्थित विश्व विख्यात संस्कृत विश्व विद्यालय के अन्तर्गत ढूंढीराज गली में संस्कृत सन्यासी डिग्री कालेज में आपने दर्शन, न्याय, मीमांसा, ज्योतिष आदि ग्रन्थों का अध्ययन करके व्याकरणाचार्य उपाधी प्राप्त की । तदनन्तर आप आचार्य पीठ रामधाम रेण पधार गये । आचार्य श्री क्षमाराम जी महाराज के वर्तमान समय में आप रेण आचार्य पीठ के उत्तराधिकारी बनकर भारत की पथ भ्रष्ट जनता को आपने उपदेश- आदेश, मधुर एवं आकर्षक वाणी द्वारा जाग्रत किया । आपमें स्वभावतः त्याग एवं उदारता की भावना थी, तथा आप भगवत् भक्ति में लीन रहते थे । कभी-कभी वैराग्य के आवेश में आकर रामधाम को छोडकर पुष्कर एवं जोधपुर के पहाड़ों में साधना हेतु पधार जाते थे । परन्तु आचार्य श्री क्षमाराम जी महाराज के वृद्ध अवस्था की स्मृति व सम्प्रदाय का उत्तरदायित्त्व का विचार जकजोर देता था । अतः पुनः रामधाम रेण में पधार जाते थे । आपके जीवन में इस प्रकार की घटनाएँ अनेक बार हुई पश्चात् आपने रामधाम रेण में बिराजकर सन्त साहित्य का पिछडा हुआ क्षेत्र आगे लिया । आचार्य श्री क्षमाराम जी महाराज के परम धाम पधारने के बाद में अत्यन्त वैराग्य के कारण पहले से ही आचार्य पद पर न रहने की प्रतीज्ञा कर ली थी परन्तु साधु समाज एवं ग्रहस्थ समाज के अति आग्रह व आचार्य परम्परा का विधान पालन करने के लिये पाँच मिनिट आचार्य पीठ को स्वीकार करके गादी पर बिराजमान हुये थे । तदनन्तर तुरन्त ही गादी का त्याग कर पूज्य गुरुदेव ने विक्रम संवत् २०२६ पोष शुक्ला चतुर्थी के दिन आचार्य पीठ को मेरे सुपुर्द कर दिया।
पश्चात् आपने परम् श्रद्धेय श्री स्वामीजी रामसुखदास जी महाराज के साथ रहकर व्यापक धर्म प्रचार किया। कुछ महिनों तक आपने गीता प्रेस गोरखपुर संस्था की सेवा की । आपके त्याग, तपस्या, सरलता, आदि देवी सम्पदा के कारण स्वाभाविक ही भूली भटकी जनता आपके शब्दों का अनुकरण कर आध्यात्मिक लाभ उठाती रही। इस प्रकार आपने भारत के कोने कोने में परिभ्रमण कर हजारो जीवों को सत्संग द्वारा भगवत्प्राप्ति का मार्ग प्रदर्शित किया। ऐसे महान् पुरुषों की देश को बड़ी आवश्यकता है, किन्तु विधि के विधान को कौन परिवर्तन कर सकता है। विक्रम संवत् २०३६ पौष कृष्णा प्रथम अष्टमी मंगलवार को वियोग के दुःख का दिन आया और शरणागत सभी जीवों को अनाथ कर- "जातस्य हि ध्रुवो मृत्युः'
का उपदेश करते हुए पूज्य गुरुदेव इहलौकिक लीला समाप्त कर सत्य लोक कैवल्यधाम पधार गये । आपका चरित्र व्यवहारिक वाणी को अगोचर है अतः मेरे तुच्छ वाणी द्वारा आपके चरित्र का वर्णन करना असंभव है ।

श्रीगुरुचरणानुरागी 
हरिनारायण शास्त्री

1 comment: