Thursday 2 February 2023

जहां पत्थर(ईंट), पानी पर तैरते है

जहां पत्थर(ईंट), पानी पर तैरते है

बाल्मिकी रामायण और राम चरित मानस में सबसे बड़ा चमत्कार यदि कोई है तो वह है रामेश्वर से लंका तक समुद्र पर पत्थरों के पुल का निर्माण शास्त्र साक्षी हैं कि नल और नील जैसे वानर इंजिनियरों की देख रेख में असंख्य वानर, भालू आदि ने बड़े-बड़े पत्थरों पर राम नाम लिखकर समुद्र में फैकते और वे समुद्र के पानी की सतह पर कागज की तरह जैसे तैरते थे। इस तरह चमत्कारिक ढंग से एक जबर्दस्त पुल का निर्माण हो गया था।

करोड़ो,लाखो वर्ष पुरानी इस घटना का मात्र रामायण के अन्य कोई साक्षी या साक्ष्य नहीं हैं। आज के वैज्ञानिक रामायण काल की उस घटना को हास्यापद, मजाक व झूठ की सीमा से भी बड़ा झूठ कहते हैं। वे सवाल करते है कि यदि राम के नाम से उस युग में पत्थर तैरते थे तो अभी क्यों नहीं तैरते? अपने स्थान पर सही है क्योकि पत्थर तैरते या तैराते किसी ने अपनी आंखों से नहीं देखा ।

राजस्थान सती-जती और सूरमाओं की जगह हैं। यहां वह सभी घटता है जो आश्चर्य- जनक हैं। अनेक बुद्धिजीवी, वैज्ञानिक, विचारक, चिन्तक और दार्शनिक इस करिश्में को देखकर सोचने पर बाध्य है। जब राम नाम के पत्थर पानी पर तैरते दिखाए जाऐं।

राजस्थान के नागौर जिले के रेण नामक गांव में संत दरियावजी महाराज पीठ राम- धाम हैं। इस रामधाम में मिट्टी से निर्मित पकाई हुई चार ईटें विद्यमान है। ये चारों ईटें आज भी पानी पर तैरती है और वर्ष में तीन बार सार्वजनिक रूप से तैराई जाती है। एक बड़ी ईट लगभग ढाई किलो वजन की है, यह लगभग १० इंच लम्बी ८ इंच चौड़ी और ३ इंच मोटाई में हैं। इस बड़ी ईट सहित शेष सभी ईटें तालाब में पानी पर ऐसे तैरती हैं जैसे कागज की बनी ईटें हो।

दरियावजी ने एक स्वतंत्र रामस्नेही संप्रदाय की आधारशिला रखी और वे रामधुन लगाया करते थे। दरियावजी महाराज के बादउनके उत्तराधिकारी गद्दीनशीन क्रमशः हरखारामजी, रामकरणजी, भगवतदासजी व रामगोपाल महाराज हुए।

ये सभी संत पक्की ईटों के एक चबूतरे पर स्नान किया करते थे। रामगोपालजी के परलोक गमन के बाद उस ईटों के चबतूरे को हटाकर स्नान का नया स्थान बनाया गया तब | ईटें तालाब के पानी में फिंकवा दी गई।

आश्चर्य तो तब हुआ जब ईटें पानी में डूबने के बजाय तैरने लग गई। उस समय महन्त क्षमारामजी ने इन ईटों को सहेज कर सुरक्षित रखा और विभिन्न अवसरों पर इन ईटों को तैराना प्रदर्शित करना आरम्भ कर दिया ।

जब पानी पर ईटें तैरने का समाचार आग की तरह पूरे मारवाड़ में फैला तो तात्कालीन मारवाड़ के महाराज सर उम्मेदसिंह ने एवं ब्रिटिश सरकार के एजेंट ने जो आबू में रहता था, इसे लोगों को बेवकूफ व मूर्ख बनाने वाला जालमाजी का कार्य मानकर स्वयं अपने सामने ईटें तैराने का आदेश दिया। तात्कालीन महन्त क्षमारामजी महाराज ने राम का नाम लेकर एक ईंट नहीं बल्कि सभी ईटें पानी में जोर से फेंक दी। देखते ही देखते ही देखते ईटें पानी की सतह पर आ गई और तैरने लग गई।,

इस चमत्कार से महाराज और एजेंट प्रभावित हुए और अग्रेंज को इस ईट में किसी प्रकार की जालसाजी का शक था। एक ईट उसने रख ली और इग्लैड में जांच के लिए भेज दी। इगलैड के वैज्ञानिकों की इस रिपोर्ट ने तो उसे और भी अधिक शर्मिंदा कर दिया कि यह ईट पत्थर की है। इनका तैराना प्रकृति के विपरीत हैं। नियमानुसार इस घटना से अग्रेज एजेंट प्रभावित हुआ और महाराज की प्रभावित हुए बगैर नहीं रह सके।

जोधपुर राजघराने पर रामस्नेही सम्प्रदाय का प्रभाव और भी अधिक हो गया। रेण में क्षमारामजी के स्वर्गवास के बाद उनके उत्तराधिकारी बलरामदासजी शास्त्री हुए जिन्होंने गद्दी का परित्याग कर अपने योग्य शिष्य हरिनारायणजी शास्त्री को गद्दीनशीन किया। आप के ब्रह्मलीन होने पर सज्जनराम जी महाराज विराजमान हुए।

 वर्ष में तीन बार इन ईटों को तलाब में सार्वजनिक तौर पर चैत्र, भाद्रपद, मार्ग शर्ष की पूर्णिमा को हजारों दर्शनार्थियों के समक्ष लाखासागर तालाब में तैराते है जिसे देखकर दर्शनार्थी भक्तगण आनन्द से अभिभूत हो उठते हैं।

No comments:

Post a Comment