Monday 6 February 2023

श्री दरियावजी महाराज द्वारा अनुभव वाणी जी को लाखा सागर में बहा देना :-


श्री दरियावजी महाराज द्वारा अनुभव वाणी जी को लाखा सागर में बहा देना :- श्रीमद् दरियाव जी महाराज की अनुभव वाणीयों की संख्या एक लाख थी इस एक लाख वाणी को महाराज श्री ने दो कारणों से रेण के पास तालाब में प्रवाहित कर दिया था। लाख वाणी प्रवाहित करने के कारण इस तालाब का नाम लाखा सागर पड़ गया था। प्रथम कारण यह था कि आपके एक शिष्य ने इस शब्द का अर्थ कर के वाणी जी के शब्दों को धुआँ घोषित कर दिया था यथा:-

'अनुभव झूठा थोथरा, निर्गुण सच्चा नाम। 
परम ज्योत परचे भई, तो धूंआ से क्या काम।।" 

यह शब्द श्री दरियाव वाणी जी का ही हैं। इस शब्द के आधार पर एक लाख वाणी जी को सागर में बहाने का मानस बना लिया था और दूसरा कारण यह था कि आचार्य श्री दरियाव जी महाराज के मामा का पुत्र फतेहराम बेमुख होकर आचार्य श्री से द्वेष रखता था। अतः एक बार वह महाराज श्री की अनुभव वाणी जी के पत्तों को चुरा कर ले गया था और उन्हें अनादर भाव से आम रास्ते पर फेंक दिया था। कुछ बच्चे पत्रों को अपने पैरों के नीचे कुचल रहे थे उस समय श्री दरियाव जी महाराज अपने शिष्यों सहित तालाब पर स्नान करने जा रहे थे। उन्होंने उसे देख लिया और एक पत्र में लिखा था - " आत्मराम सकल घट भीतर " इन शब्दों को पढ़कर आचार्य श्री को बहुत दुःख हुआ था अतः ऐसा समझकर कि कलियुग में वाणीयों का सम्मान नहीं होगा, उन्होंने वाणी जी को तालाब में प्रवाहित कर दिया था। बाद में जो महाराज श्री जी के समर्पित शिष्य थे, उनको वाणी जी के शब्द याद थे। उनका संग्रह करके उन शिष्यों ने" श्रीमद दरियाव गीता "ग्रन्थ महाराज श्री जी की वाणी जी की निशानी रखी, जो वर्तमान समय में असंख्य साधक जन श्रीमद दरिया गीता जी का पाठ करते हैं। कहते है कि वह बेमुख फतेहराम द्वेष के कारण जल्दी मृत्यु को प्राप्त हो गया और प्रेत योनि में जा गिरा। बाद में उसने प्रेतयोनि में पड़े-पड़े ही आ. श्री दरियाव जी महाराज से अपनी मुक्ति के लिए प्रार्थना की थी, तब महाराज श्री जी ने दयादृष्टि कर के उसे प्रेत योनि से मुक्त किया और उनका उद्धार ही कर दिया था। इस प्रकार करूणा के सागर श्री मद् दरियाव जी महाराज ने अनन्तजीवों पर दयादृष्टि करके उनकों भव सागर से पार लगाया तथा महाराज श्री की शरण में आकर अनन्त जीव भव सागर से तर गये। जब महाराज श्री जी द्वारा वाणी में भरे हुए दिव्य लोकोपकारी संदेशों को लाखा सागर में प्रवाहित किए जाने से सम्पूर्ण शिष्य समुदाय को अपार कष्ट हुआ था। कर्म भक्ति व ज्ञान योग से परिपूर्ण जीवन दर्शन की अभूतपूर्व निधि के इस प्रकार बहा देने से जो क्षति हुई है वह कभी पूरी नहीं हो सकती हैं।

 श्री दरियाव जी महाराज ने जब अनुभव वाणीजी को लाखा सागर में बहा दिया था, तब सभी शिष्यों को बड़ा दुःख हुआ था। उन शिष्यों के मन की बात को समझकर महाराज श्री ने उन सभी शिष्यों को विशेषकर रामभजन करने का आदेश दिया था। वे सभी शिष्य केवल राम सुमरण भजन करने में लग गये थे । यथा:-

'राम नाम सुमिरण दिया, दिया भक्ति हरी भाव। 
आठ पहर बिसरो मति, यूं कहै गुरू दरियाव ।।


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