सतपुरुषारे भोग लागे,
शब्द अनाहद घंटा बाजे ।
प्रेम प्रीती से करी है रसोई,
अमृत भोजन पारस होई
कंचन झारी सुकृत थाळ,
जीमन बैठे राम दयाल
पाय प्रसाद जल आचमन कीनो,
महापरसाद दास कू दीनो
दास एक कणका भर लीनो,
ताते काळ भयो आधीनो
कहे कबीर हम भये सनाथ,
जब सतगुरु मस्तक धरिया हाथ।।
No comments:
Post a Comment