Thursday, 17 April 2025

सन्त दरियाव साहिब : जीवन और साधना

संत दरिया साहिब : जीवन और साधना

“हाथ काम मुख राम है, हृदय सांची प्रीत।
जनदरिया ग्रही साध की याहि उत्तम रीत।”

परिचय

भारतीय संत परंपरा में संत दरिया साहिब एक अत्यंत प्रकाशमान सितारे की भांति हैं। उनका जीवन, साधना और वाणी आत्मा को भीतर से झकझोर देती है। यद्यपि उनके जीवन पर इतिहासकारों का विशेष ध्यान नहीं रहा, फिर भी उनके अनुयायियों के संस्मरण और वाणी में बिखरे सूत्रों से हमें उनके जीवन-दर्शन का अमूल्य मार्गदर्शन मिलता है।


आत्मा-परमात्मा का संबंध

दरिया साहिब की वाणी का मूल संदेश यह है कि:

“आत्मा परमात्मा का अंश है,
पर माया और कर्मों में बंधकर वह अपने मूल स्वरूप को भूल चुकी है।”

वे बताते हैं कि इस बंधन से मुक्ति केवल एक पूर्ण सतगुरु की कृपा से ही संभव है, जो ‘सूरत-शब्द योग’ की साधना द्वारा आत्मा को जाग्रत करता है।


भक्ति आंदोलन में योगदान

12वीं से 17वीं शताब्दी के भक्ति आंदोलन में दरिया साहिब की भूमिका विशिष्ट रही। उन्होंने बाहरी आडंबर, जातिवाद, और कर्मकांड का विरोध करते हुए अंतरमुखी साधना और 'राम नाम' की आराधना को आत्मिक उन्नति का श्रेष्ठ मार्ग बताया।

उनके शिष्य 'रामस्नेही' कहलाए — अर्थात वे जो ‘राम’ (परमात्मा) से सच्चा प्रेम करते हैं। राजस्थान का रेण नगर इस संप्रदाय का प्रमुख केंद्र बना, जहाँ स्थित सत्संग स्थलों को ‘रामद्वारा’ कहा जाता है।


जन्म और दिव्य घटनाएं

संत दरिया साहिब का जन्म विक्रम संवत 1733, भाद्रपद कृष्ण जन्माष्टमी को हुआ। किंवदंती के अनुसार, उनके माता-पिता को द्वारका तीर्थ में एक कमल पर तैरता हुआ तेजस्वी बालक दिखाई दिया, जिसे उन्होंने पुत्र रूप में स्वीकार कर लिया। चूंकि वह जल (दरिया) से मिला था, इसलिए उसका नाम पड़ा – ‘दरियाव’

बाल्यकाल में सर्प द्वारा छाया देना,
मदरसे में अरबी-फारसी की शिक्षा,
और काशी में शास्त्रों का अध्ययन –
इन सभी घटनाओं ने उनके विलक्षण व्यक्तित्व को आकार दिया।


सतगुरु की शरण और साधना

उनकी आत्मिक यात्रा तब तीव्र हुई जब वे संत प्रेमदास जी की शरण में पहुँचे। विक्रम संवत 1769, कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन उन्हें राम नाम की दीक्षा मिली। उस समय वे 36 वर्ष के थे।

प्रेमदास जी ने उन्हें ‘सूरत-शब्द योग’ की साधना सिखाई, जिसमें उन्होंने केवल 1 वर्ष 7 महीने में परमात्मा का साक्षात्कार कर लिया।


गृहस्थ में साधना

दरिया साहिब ने गृहस्थ जीवन में रहते हुए साधना की और दूसरों को भी यही सिखाया। वे मानते थे कि:

"गृहस्थ में रहकर भी,
प्रभु की प्राप्ति संभव है — यदि मन निर्मल और लक्ष्य स्पष्ट हो।"

उनकी वाणी नारी सम्मान की पक्षधर रही और भक्ति को भाव प्रधान मानती थी, न कि स्वाद या आडंबर प्रधान।


वाणी और साहित्य

दरिया साहिब की वाणी सरल, मधुर और हृदयस्पर्शी है। दुर्भाग्यवश, उनका मूल वाङ्मय लुप्त हो गया, पर उनके शिष्यों ने स्मृति के आधार पर उनकी वाणी को संकलित कर ‘अनुभव गीता’ के रूप में संरक्षित किया।

"अनुभव झूठा थोत्रा, निर्गुण सच्चा नाम।
परमजोत परचे बिना, तो धुआं से क्या काम?"

इस दोहे ने दरिया साहिब को इतना व्यथित किया कि उन्होंने अपनी वाणी जल में प्रवाहित कर दी।


निष्कर्ष

संत दरिया साहिब एक ऐसे पूर्ण संत थे जिन्होंने न केवल अपने युग में आध्यात्मिक ज्योति जलायी, बल्कि आज भी उनकी वाणी आत्मा को जाग्रत करने वाली प्रेरणा देती है। उनकी साधना, शांति और सरलता हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की प्राप्ति किसी विशेष स्थिति में नहीं, बल्कि सच्ची खोज और सतगुरु की कृपा में छुपी है।



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