Friday, 18 April 2025

उपदेश: मनुष्य और परमात्मा का संबंध


उपदेश: मनुष्य और परमात्मा का संबंध

मनुष्य के समक्ष सदा से यह प्रश्न रहा है कि क्या परमात्मा वास्तव में है? यदि है, तो उससे मिलन कैसे संभव है? इस विषय पर अनेक ग्रंथ और पुस्तकें लिखी गई हैं, परंतु केवल संत महात्मा ही इस गूढ़ प्रश्न का सही उत्तर दे सकते हैं, क्योंकि वे स्वयं परमात्मा से मिलन कर चुके होते हैं। उनका अनुभव प्रत्यक्ष प्रमाण होता है।

संतों का कहना है कि जब से जीव इस सृष्टि में आया है, वह परमात्मा की तलाश में इधर-उधर भटक रहा है, जबकि परमात्मा तो उसके भीतर ही विद्यमान है। संत महात्मा न केवल यह सिद्ध करते हैं कि परमात्मा है, बल्कि यह भी बताते हैं कि वह एक ही है। यहाँ "एक" का तात्पर्य संख्या से नहीं, बल्कि उसके अद्वैत स्वरूप से है — वह ही सत्य है, वही सब कुछ है, उसके सिवा और कोई नहीं।

दरियाव साहिब की वाणी में परमात्मा

संत दरियाव साहिब ने अपनी वाणी की शुरुआत प्रभु की वंदना से की है, जिसे उन्होंने 'ब्रह्म' या 'परब्रह्म' कहा:

"नमो राम पर ब्रह्माजी सतगुरु संत आधार।

जन दरिया बंदन करे पल पल बारम्बार ।।"

अपने जीवन के अंतिम चरण में जब प्रभु से उनका मिलन हुआ, तब वे प्रेम में निमग्न होकर कहते हैं:

"सोई कंत कबीर का, दादू का महाराज।

 सब संतन का बलमा, दरिया का सिरताज। 

तीन लोक चौदह भवन, दरिया देख्या जोय ।

एक राम सरीखा राम है, इसा न दूजा कोय।।"

यह वही परमात्मा है जो कबीर का स्वामी था, दादू का प्रियतम था, और सभी संतों का इष्ट है। वही दरियाव साहिब का सिरताज है — तीनों लोकों का स्वामी।

परमात्मा का दर्शन और अनुभव


उन्होंने प्रभु को उस निर्गुण, निराकार रूप में अनुभव किया, जो इंद्रियों की पकड़ से परे है। वह सृष्टिकर्ता है, जो हर कण में व्याप्त है। उसका कोई आदि, मध्य या अंत नहीं है। दरिया साहिब कहते हैं:

"आदि अंत मध्य नहीं, जग को कोई पार। 

मनुष्य जीवन का उद्देश्य

दरियाव साहिब ने मनुष्य जीवन को एक यात्रा बताया है। इस यात्रा का उद्देश्य है आत्मा का परमात्मा से मिलन। यह दुर्लभ मानव जीवन बार-बार जन्म मरण के चक्र से गुजरकर प्राप्त हुआ है। उन्होंने कहा:

शरीर पंचतत्वों से बना है, और इस जीवन का उद्देश्य है अपने कर्मों का बोझ उतारकर आत्मा को परमात्मा में विलीन करना।

सतगुरु का महत्व

परमात्मा तक पहुंचने के लिए एक मार्गदर्शक की आवश्यकता होती है — और वही हैं सतगुरु। दरिया साहिब कहते हैं:

"साधु मेरे सतगुरु भेद बताया, टेट राम निकट ही पाया। 

सतगुरु मिलें तो अर्थ बतावे, जीव ब्रह्म का मेला।"

सतगुरु वह होते हैं जिन्होंने स्वयं परमात्मा से मिलन कर लिया होता है। वे मार्ग दिखाते हैं, शब्द का अभ्यास कराते हैं और अंतर्मुखी यात्रा में साथ देते हैं।

" सतगुरु दाता, मुक्ति का दरिया प्रेम दयाल। 

कृपा कर चरणों लिया, मेटा सकल जंजाल।"

सच्चे साधु की पहचान

दरिया साहिब सच्चे साधु की पहचान बताते हुए कहते हैं:

"दरिया लक्षण साधु, बाहर भीतर एक। 

रहनी करनी साध की, एक राम की टेक।"

सच्चा साधु सांसारिक व्यवहार करता हुआ भी अंतर्मुखी भक्ति में लीन रहता है। वह मायामोह से परे होता है और सदैव राम नाम में स्थित होता है।

संदेश

दरिया साहिब का उपदेश है कि यह मानव जीवन एक अमूल्य अवसर है — इसे संसार के भौतिक सुखों में न गंवाकर परमात्मा की भक्ति में लगाएं। उन्होंने स्वयं के अनुभव से बताया कि सतगुरु की कृपा से ही परमात्मा से मिलन संभव है। उन्होंने कहा:

"दरिया गुरु पूरा मिला, नाम दिखाया नूर। 

 निसा गई सुख ऊपजा , किया निसाना दूर।।





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