Friday 6 November 2015

सुमिरण का अंग श्री दरियाव दिव्य वाणी जी

दरिया सुमिरै राम को ,कोट कर्म की हान ।
जम और काल का भय मिटै, ना काहु की कान।।
परमात्मा के भजन में आनंद के साथ ही साथ दूसरे भी बहुत लाभ
है । नामजाप करते समय अखंड आनंद का अनुभव तो होता ही है परंतु
साथ ही करोडों ही कर्म भी क्षय अवस्था को प्राप्त हो जाते है । आज
यह कर्म प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की बागडोर पकड़े  हुए है । जैसे कर्म
नाच नचाता है, वैसे ही हमें नाचना पडता है । जिसके कर्म नष्ट हो गए
उसे कर्मों के हाथों नाचना नहीं पडेगा । फिर तो वह केवल एक परमात्मा
के ही सामने नाचेगा । जैसे मीरा नाची थी । संत कबीर, दादू और दरिया
नाचे थे । इन महापुरुषों ने परमात्मा के सामने ऐसा नृत्य किया कि इनका ,
चौरासी का नृत्य सदा-सदा के लिए छुट गया । इस प्रकार से जब कर्म
बंधन समाप्त हो जाएगा तब हम स्वतंत्र हो जाएंगे तथा परमात्मा के
अधिकारी बन जाएंगे । अन्यथा यह कर्म पता नहीं किस योनि में हमारी
रचना करेगा । इसीलिए आचार्यश्री कहते है कि नाम जाप करने से आप
कर्मो से स्वतंत्र हो जाओगे तथा आपका जीवन पूर्णत:कर्मातीत हो
जाता । फिर आपको किसी का भय नहीं होगा ।

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