।।मन स्थिर रहता है एकेश्वरवाद भक्ति से ।।
भक्ति केवल एक ईश्वर की करनी
चाहिए । बहुदेववाद से मनुष्य का मन
किंकर्तव्यमूढ़ हो जाता है । ऐसी भक्ति में वह न
घर का रहता है और न घाट का । एकेश्वरवाद
भक्ति से मन स्थिर रहता से । ईश्वर से प्रेम भाव
रखने के बाद अन्य शक्तियों से प्रेम भाव की
जरुरत नहीं होती । ईश्वर प्राप्ति के बाद अन्य
सब बौने हो जाते हैं । कथा का महात्मय पैसो से
नहीं आन्का जा सकता। पैसों के लोभ में सुनाई
गई भागवत कथा में कोई सार नहीं रह जाता।
व्यक्ति को पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त होने
के बाद शेष समय में ,भगवद भजन करना
चाहिए ।
माँ की प्रताड़ना से बच्चे के जीवन में
बदलाव अाता से उसी भांति गुरू की प्रताड़ना से
भी शिष्य के जीवन से बदलाव अाता है।
साधना से जीवन में अवश्य सुधार होता है । गुरु
जैसा दूसरा स्थाई उपकारी नहीं तो सकता ।
चाहिए । बहुदेववाद से मनुष्य का मन
किंकर्तव्यमूढ़ हो जाता है । ऐसी भक्ति में वह न
घर का रहता है और न घाट का । एकेश्वरवाद
भक्ति से मन स्थिर रहता से । ईश्वर से प्रेम भाव
रखने के बाद अन्य शक्तियों से प्रेम भाव की
जरुरत नहीं होती । ईश्वर प्राप्ति के बाद अन्य
सब बौने हो जाते हैं । कथा का महात्मय पैसो से
नहीं आन्का जा सकता। पैसों के लोभ में सुनाई
गई भागवत कथा में कोई सार नहीं रह जाता।
व्यक्ति को पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुक्त होने
के बाद शेष समय में ,भगवद भजन करना
चाहिए ।
माँ की प्रताड़ना से बच्चे के जीवन में
बदलाव अाता से उसी भांति गुरू की प्रताड़ना से
भी शिष्य के जीवन से बदलाव अाता है।
साधना से जीवन में अवश्य सुधार होता है । गुरु
जैसा दूसरा स्थाई उपकारी नहीं तो सकता ।
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