Wednesday 25 November 2015

चिंतन धारा"अध्यात्म की और हो

"चिंतन धारा"अध्यात्म की और हो
व्यक्ति का चिन्तन साकार नही होता । तब
वह चिंता करने लग जाता है,जिससे अवसाद
नामक बीमारी हो जाती है और शरीर घटने
लगता है । चिंता व्यक्ति को मृत्यु के कगार पर ले
जाती है। हमारी "चिन्तनधारा" आध्यात्मिकता
की अोर होनी चाहिए। व्यक्ति सांसारिक चिंत्तन
में ही लगा रहा तो उसकी ऊर्जा परिवार में ही
सीमित रहकर समाप्त तो जाएगी। व्यक्ति का
चिन्तन ऐसा हो जिससे खुद का तथा औरों का
भी भला हो । जिसे राम नाम की चिन्तामणी मिल
जाती है ।वह सांसारिक लोगों से सीमित सम्पर्क
ही रखता है । हमारे मस्तिक में अज्ञानता की गांठ
पड़ी हुई है । सद्गुरु के ज्ञानरुपी चिन्तन से ही
उस गाँठ को खोला जा सकता से । सदूगुरू ही
जीने की विधि बताते हैं । जीवन में
सुख-दुःख, लाभ-हानि का क्रम चलता ही रहता
है । मनुष्य इस संकट से उभरना चाहता है,
लेकिन वह उभर नहीं पा रहा है ।

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