श्री दरियावजी महाराज का श्री सुमिरन का अंग. राम भजेै गुरू शब्द ले, तौ पलटेै मन देह !
दरिया छाना क्यो रहेै, भू पर बैठा मेंह (१).
दरिया नाम है निरमला, पूरन ब्रह्म अगाध !
कहे सुने सुख ना लहे, सुमिरे पावै स्वाद (२).
दरिया सुमिरेै राम को, करम भरम सब खोय !
पूरा गुरू सिर पर तपै, विघन न लागै कोय (३).
दरिया सुमिरे राम को, करम भरम सब चूर !
निस तारा सहजै मिटेै, जो ऊगै निर्मल सूर (४)
राम बिना फीका लगै, सब किरिया शास्त्र ग्यान !
दरिया दीपक कहा करेै, उदय भया निज भान (५).
दरिया सूरज ऊगिया , नैन खुला भरपूर !
जिन अंधे देखा नहीं, उनसे साहब दूर (६).
दरिया सूरज ऊगिया, चहुं दिस भया उजास,
नाम प्रकासै देह में, तौ सकल भरम का नास (७).
आन धरम दीपक जिसा, भरमत होय विनास !
दरिया दीपक क्या करे, आगे राम रवि परकास (८).
दरिया सुमिरेै राम को, दूजी आस निवार !
एक आस लागा रहै,तो कदे न आवेै हार (९).
दरिया नर तन पाय कर, कीया चाहै काज !
राव रंक दोनों तरेैं, जो बैठे नाम जहाज (१०).
नाम जहाज बैठे नहीं, आन करेै सिर भार !
दरिया निश्चय बहैंगे, चौरासी की धार (११).
जन्म अकारथ नाम बिन, भावै जान अजान !
जन्म मरण जम काल की, मिटै न खैंचा तान (१२)
मुसलमान हिंदू कहा, षट दरशन रंक राव !
जन दरिया निज नाम बिन, सब पर जम का दांव (१३)
स्वर्ग लोक पाताल कह, (कह) तीन लोक विस्तार !
जन दरिया निज नाम बिन, सभी काल को चार (१४). दरिया नर तन पाय कर, किया न राम उचार !
बोझ उतारन आइया,(सो) लिये चले सिर भार (१५).
जो कोई साधु गृही में, माहिं राम भरपूर !
दरिया कह उस दास की, मैं चरनन की धूर (१६)
बाहर बाना भेष का, माहीं राम का राज !
कह दरिया वे साधवा, हैं मेरे सिर का ताज (१७).
राम सुमिर रामहिं मिला, सो मेरे सिर का मौर !
दरिया भेष विचारिये, खैर मैर की ठौर (१८).
दरिया सुमिरे राम काे, कोटि कर्म की हान !
जम और काल का भय मिटै, ना काहू की कान (१९). दरिया सुमिरेै राम को, आतम को आधार !
काया काची काच सी, कंचन होत न वार (२०)
दरिया राम संभालते, काया कंचन सार !
आन धर्म और भर्म सब, डाला सिर से भार (२१).
दरिया सुमिरे राम को, सहज तिमिर का नास !
घट भीतर होय चाँदना, परम जोति परकास (२२). सतगुरू संग न संचरया, राम नाम उर नाहीं !
ते घट मरघट सारिखा, भूत बसे ता माहिं (२३).
राम नाम ध्याया नहीं, हुआ बहुत अकाज !
दरिया काया नगर में, पंच भूत का राज (२४)
पंच भूत के राज में, सब जग लागा धुंध !
जन दरिया सतगुरू बिना, मिल रहा अंधा अंध (२५).
सब जग अंधा राम बिन, सुझे न काज अकाज !
राव रंक अंधा सबै, अंधो ही का राज (२६).
दरिया सब जग आंधरा, सूझैे सो बेकाम !
सूझा तबही जानिये, ता को दरसैे राम (२७)
मन बच काया समेट कर, सुमिरै आतम राम !
दरिया नेड़ा नीपजेैं, जाय बसे निज धाम (२८)
सकल ग्रन्थ का अर्थ है, सकल बात की बात !
दरिया सुमिरन राम का, कर लीजेै दिन रात (२९).
ध्रु लोक ध्रु राम कह, कहै पताला सेस !
दरिया परगट नाम बिन, कहु कौन आयो देख (३०). लोह पलट कंचन भया, कर पारस को संग !
दरिया परसेै नाम को, सहजहिं पलटै अंग (३१).
अपने अपने इष्ट में, राच रहा सब कोय !
दरिया रत्ता राम सूं, साध सिरोमन सोय (३२)
दरिया धन वे साधवा, रहैं राम लीव लाय !
राम नाम बिन जीव कों, काल निरंतर खाय (३३).
दरिया काया कारवी, मौसर है दिन चार !
जब लग साँस शरीर में, तब लग राम सँभार (३४).
राम नाम रसना रटै, भीतर सुमिरैे मन !
दरिया ये गत साध की, पाया नाम रतन (३५).
दरिया दूजे धर्म से, संसय मिटैे न सूल !
राम नाम रटता रहै, सर्व धर्म का मूल (३६)
लख चौरासी भुगत कर, मानुष देह पाई !
राम नाम ध्याया नहीं, तो चौरासी आई (३७).
दरिया नाके नाम के, बिरला आवेै कोय !
जो आवै तो परम पद, आवागमन न होय (३८)
दरिया राम अगाध है, आतम का आधार !
सुमिरत ही सुख ऊपजेै,सहजहि मिटै विकार (३९).
दरिया राम संभालता, देख किता गुन होय !
आवागमन के दुख मिटै, ब्रहम परायन सोय (४०)
मरना है रहना नहीं, जा में फेर न सार !
जन दरिया भय मानकर, अपना राम संभार (४१).
कहाँ कोई बन बन फिरेै, कहाँ लियाँ कोई फौज !
जन दरिया निज नाम बिन, दिन दस मन की मौज(४२). दरिया आतम मल भरा, कैसे निर्मल होय !
साबुन लावे प्रेम का, राम नाम जल धोय (४३).
दरिया इस संसार में, सुखी एक है संत !
पिये सुधारस प्रेम से,राम नाम निज तंत (४४)
राम नाम निस दिन रटै, दूजा नाहीं दाँय !
दरिया एेसे साध की, मैं बलिहारी जाँय (४५).
दरिया सुमिरन राम का, देखत भूली खेल !
धन धन हैं वे साधवा, जिन लिया मन मेल (४६).
दरिया सुमिरन राम का, कीमत लखेै न कोय !
टुक इक घट में संचरै, पाव वस्तु मन होय (४७).
दरिया सुमिरे राम काे, साकट नाहीँ सुहात !
बिजली चमके गगन में, गधिया बावै लात (४८)
फिरी दुहाई शहर में, चोर गये सब भाज !
शत्रू फिर मित्रज भया, हुआ राम का राज (४९)
जो कुछ था सो ही बनी, मिट गई खैंचा तान !
चोर पलट कर साह भये, फिरी राम की आन (५०).
राम नाम तारक मंत्र, सतगुरू दिया बताय !
जन दरिया शंकर भजे, शेष रहे लिव लाय (५१)
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