Thursday, 18 February 2016
Tuesday, 16 February 2016
भक्ति में अहंकार ठीक नही।
भक्ति में अहंकार ठीक नही।
भक्ति में अहंकार को दूर रखना चाहिए ।
अहंकार के साथ की गई भक्ति फलित नहीं होती
और उससे ईश्वर भी प्रसन्न नहीं होते । मन से
भगवान की भक्ति करने पर भगवान भक्त के
समक्ष प्रकट होने के लिए आतुर रहते हैं । पृथ्वी
पर चराचर करोड़ो जीव मानव शरीर की कामना
करते है,लेकिन कई जन्मों के पुण्य कर्मों के
फलस्वरुप ही मानव देह प्राप्त होती है । चौरासी
लाख योनियों को भोगने के पश्चात मानव जीवन
मिलता है,इसलिए जीवन का सदुपयोग करना
चाहिए ।
अहंकार के साथ की गई भक्ति फलित नहीं होती
और उससे ईश्वर भी प्रसन्न नहीं होते । मन से
भगवान की भक्ति करने पर भगवान भक्त के
समक्ष प्रकट होने के लिए आतुर रहते हैं । पृथ्वी
पर चराचर करोड़ो जीव मानव शरीर की कामना
करते है,लेकिन कई जन्मों के पुण्य कर्मों के
फलस्वरुप ही मानव देह प्राप्त होती है । चौरासी
लाख योनियों को भोगने के पश्चात मानव जीवन
मिलता है,इसलिए जीवन का सदुपयोग करना
चाहिए ।
धर्म पर शासन करने और उसे संचालित
करने के लिए ऋषियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती
है।शास्त्रो में जब जब धर्म के बारे में लिखा गया
। तब तब विघटन की स्थिति आई। तब ऋषियोँ ने
प्रेम के माध्यम से समाज को पुनः जोड़ने का
प्रयास किया। भारतीय ऋषियों, राजऋषियों ने
प्राण देकर सत्य की रक्षा की।
करने के लिए ऋषियों की महत्वपूर्ण भूमिका होती
है।शास्त्रो में जब जब धर्म के बारे में लिखा गया
। तब तब विघटन की स्थिति आई। तब ऋषियोँ ने
प्रेम के माध्यम से समाज को पुनः जोड़ने का
प्रयास किया। भारतीय ऋषियों, राजऋषियों ने
प्राण देकर सत्य की रक्षा की।
Wednesday, 10 February 2016
संसार दुःखो का घर
संसार दुःखो का घर
हिम्मत रखने वाले साधक को साधना में
सफलता अवश्य मिलती है । संसार दुखों का घर
है । सदूगुरु हमें इन दुखों से उभारने के लिय
उस स्थान पर ले जाना चाहत्ते हैं जहाँ आनंद ही
आनन्द है । स्वार्थ का भाव होने के कारण मनुष्य
सुखी नहीं रह पाता । कष्ट पड़ने पर ही व्यक्ति
राम नाम का स्मरण करता है ।
एक गृहिणी घर की सफाई के लिए प्रात:काल
झाडू. का इस्तेमाल करती है, फिर उसे कहीं
पटक देती है । जरुरत पड़ने पर ही उस झाडू. को
पुनः ढूंढती हैे,उसी भांति व्यक्ति,मन पूरी तरह
मलिन होने पर राम नाम रटता है । संकट से
उभरते ही सांसारिकता की दौड़ में शामिल हो
जाता है। जिस प्रकार सेनापति के आदेश से
सैनिक सम्भलता है,वर्दी धारण करता है,शस्त्र
उठाकर लड़ने को तैयार होता है, उसी प्रकार
सच्चा शिष्य गुरु के आदेश पर शरीर,जीवन और
मन को सम्भालता हुआ साधना ने लगता है।
सफलता अवश्य मिलती है । संसार दुखों का घर
है । सदूगुरु हमें इन दुखों से उभारने के लिय
उस स्थान पर ले जाना चाहत्ते हैं जहाँ आनंद ही
आनन्द है । स्वार्थ का भाव होने के कारण मनुष्य
सुखी नहीं रह पाता । कष्ट पड़ने पर ही व्यक्ति
राम नाम का स्मरण करता है ।
एक गृहिणी घर की सफाई के लिए प्रात:काल
झाडू. का इस्तेमाल करती है, फिर उसे कहीं
पटक देती है । जरुरत पड़ने पर ही उस झाडू. को
पुनः ढूंढती हैे,उसी भांति व्यक्ति,मन पूरी तरह
मलिन होने पर राम नाम रटता है । संकट से
उभरते ही सांसारिकता की दौड़ में शामिल हो
जाता है। जिस प्रकार सेनापति के आदेश से
सैनिक सम्भलता है,वर्दी धारण करता है,शस्त्र
उठाकर लड़ने को तैयार होता है, उसी प्रकार
सच्चा शिष्य गुरु के आदेश पर शरीर,जीवन और
मन को सम्भालता हुआ साधना ने लगता है।
Tuesday, 9 February 2016
राम हि राम बस राम हि राम ।और नाहि काहू से काम।राम हि राम बस ...
राम हि राम बस राम हि राम ।
और नाहि काहू से काम।
राम हि राम बस ...
और नाहि काहू से काम।
राम हि राम बस ...
तन में राम तेरे मन में राम ।
मुख में राम वचन में राम ।
जब बोले तब राम हि राम ।
और नाहि काहू से काम ।
राम हि राम बस रामहि राम ।।
मुख में राम वचन में राम ।
जब बोले तब राम हि राम ।
और नाहि काहू से काम ।
राम हि राम बस रामहि राम ।।
जागत सोवत आठहु याम ।
नैन लखें शोभा को धाम ।
ज्योति स्वरूप राम को नाम ।
और नाहि काहू से काम ।
राम हि राम बस रामहि राम ।।
नैन लखें शोभा को धाम ।
ज्योति स्वरूप राम को नाम ।
और नाहि काहू से काम ।
राम हि राम बस रामहि राम ।।
कीर्तन भजन मनन में राम ।
ध्यान जाप सिमरन में राम ।
मन के अधिष्ठान में राम ।
और नाहिं काहू सो काम ।
राम हि राम बस रामहि राम ।
ध्यान जाप सिमरन में राम ।
मन के अधिष्ठान में राम ।
और नाहिं काहू सो काम ।
राम हि राम बस रामहि राम ।
सब दिन रात सुबह और शाम ।
बिहरे मन मधुबन में राम ।
परमानन्द शान्ति सुख धाम ।
और नाहि काहू से काम ।
राम हि राम बस रामहि राम ।
बिहरे मन मधुबन में राम ।
परमानन्द शान्ति सुख धाम ।
और नाहि काहू से काम ।
राम हि राम बस रामहि राम ।
राम जी राम सा
परमात्मा प्राप्ति हेतु शूरवीर होना जरूरी।
परमात्मा प्राप्ति हेतु शूरवीर होना जरूरी।
जीवन में लक्ष्य प्राप्ति हेतु व्यक्ति का
शूरवीर होना अतिआवश्यक से । भक्ति पथ पर भी
उस परम लक्ष्य 'परमात्मा' की प्राप्ति हेतु
शूरवीरता का होना परम आवश्यक है। इस
संसार में विद्वान,ज्ञानी ,ध्यानी सब तरह के लोग
हैं,लेकिन भगवत् भक्ति करने वाले कम ही मिलेंगे ।
सच्चा शुर ही शत्रु के सम्मुख रहकर
उसके बाणों के प्रहारों को सहन कर सकता हे ।
इसी प्रकार सदूगुरु के शब्द रुपी बाण के प्रहार
को केवल सच्चा भक्त ही सहन कर सकता है ।
गुरु के शब्द रुपी बाण से ह्रदय पर प्रभाव होने से
ही सब अवगुणों को दूर किया जा सकता है ।
व्यक्ति का अन्तःकरण कोरे कागज की भांति होता
है, लेकिन अन्तःकरण वासनाओ से भर जाने के
कारण और कुछ लिख पाना असम्भव हो जाता
है। शिष्य को गुरु के समक्ष कोरा कागज बनकर
उपस्थित होना चाहिये।
शूरवीर होना अतिआवश्यक से । भक्ति पथ पर भी
उस परम लक्ष्य 'परमात्मा' की प्राप्ति हेतु
शूरवीरता का होना परम आवश्यक है। इस
संसार में विद्वान,ज्ञानी ,ध्यानी सब तरह के लोग
हैं,लेकिन भगवत् भक्ति करने वाले कम ही मिलेंगे ।
सच्चा शुर ही शत्रु के सम्मुख रहकर
उसके बाणों के प्रहारों को सहन कर सकता हे ।
इसी प्रकार सदूगुरु के शब्द रुपी बाण के प्रहार
को केवल सच्चा भक्त ही सहन कर सकता है ।
गुरु के शब्द रुपी बाण से ह्रदय पर प्रभाव होने से
ही सब अवगुणों को दूर किया जा सकता है ।
व्यक्ति का अन्तःकरण कोरे कागज की भांति होता
है, लेकिन अन्तःकरण वासनाओ से भर जाने के
कारण और कुछ लिख पाना असम्भव हो जाता
है। शिष्य को गुरु के समक्ष कोरा कागज बनकर
उपस्थित होना चाहिये।
Wednesday, 3 February 2016
मृत्यु से डरना कायरता
मृत्यु से डरना कायरता
मृत्यु अपरिहार्य है। मृत्यु से किसी को
बचाया नहीं जा सकता। भगवान अपने नियम
और सिद्धांत के अनुसार कार्य करते हैं । मृत्यु से
भयभीत होना कायरता है । परमात्मा और आत्मा
अजर-अमर है । ईश्वर के सिद्धांत के अनुसार
शरीर बदलना पड़ता है । अज्ञानता के कारण
शरीर छोड़ने पर दु:ख होता है, जबकि यह स्थिति
छोड़ना शाश्वत सत्य है । शरीर की नश्वरता अोर
आत्मा की अमरता का ज्ञान प्राप्त करने के लिए
राम नाम स्मरण अोर सत्संग अावश्यक है । यह
संसार एक धर्मशाला और मनुष्य मुसाफिर के
समान है ।
त्याग जीवन को सुखी बनाने का आसान
उपाय है। त्याग से मन को शांति मिलती है।
त्याग का दिखावा नही करना चाहिए।त्याग करना
बुरी बात नही,संग्रह करना बुरा है। व्यक्ति को
सांसारिक मायाजाल का बोध होने पर ही उसकी
साधना का मार्ग सरल होता है।
बचाया नहीं जा सकता। भगवान अपने नियम
और सिद्धांत के अनुसार कार्य करते हैं । मृत्यु से
भयभीत होना कायरता है । परमात्मा और आत्मा
अजर-अमर है । ईश्वर के सिद्धांत के अनुसार
शरीर बदलना पड़ता है । अज्ञानता के कारण
शरीर छोड़ने पर दु:ख होता है, जबकि यह स्थिति
छोड़ना शाश्वत सत्य है । शरीर की नश्वरता अोर
आत्मा की अमरता का ज्ञान प्राप्त करने के लिए
राम नाम स्मरण अोर सत्संग अावश्यक है । यह
संसार एक धर्मशाला और मनुष्य मुसाफिर के
समान है ।
त्याग जीवन को सुखी बनाने का आसान
उपाय है। त्याग से मन को शांति मिलती है।
त्याग का दिखावा नही करना चाहिए।त्याग करना
बुरी बात नही,संग्रह करना बुरा है। व्यक्ति को
सांसारिक मायाजाल का बोध होने पर ही उसकी
साधना का मार्ग सरल होता है।
Tuesday, 2 February 2016
।।गर्भ काल से ही शुरू होते है संस्कार।।
।।गर्भ काल से ही शुरू होते है संस्कार।।
व्यक्ति के जीवन में संस्कारों का प्रादुर्भाव
जन्म से पहले गर्भकाल से ही शुरु हो जाता है।
माता की आध्यात्मिकता का प्रभाव गर्भस्त शिशु
पर पड़ता है । इसलिए गर्भकाल में माताओं को
भागवत कथा श्रवण करना चाहिए। परमवीर
अभिमन्यु,भक्त प्रहलाद आदि को गर्भ काल में ही
धार्मिक संस्कार मिले थे । ऐसे बालक मात्ता-पिता
के आध्यात्मिक संस्कारो से ओत्त-प्रोत होते हैं ।
बालक में जन्म के बाद ही ज्ञान की वृद्धि होती हे ।
संस्कारवान व्यक्ति ही नर से नारायण बन
सकता है । संसार में रहना और जीने-मरने की
कला को सीखना चाहिए । इसीसे अगला जन्म
सुखद हो सकेगा । इसलिये आँखों देखि बात पर
ही विश्वास करना चाहिये।जब तक हम परमात्मा
के विषय में केवल सुनते रहते है तब तक संसार को
सत्य मानते है और जब सत्य स्वरूप परमात्मा का
साक्षात्कार कर लेते है तो संसार असत्य लगने
लगता है।
जन्म से पहले गर्भकाल से ही शुरु हो जाता है।
माता की आध्यात्मिकता का प्रभाव गर्भस्त शिशु
पर पड़ता है । इसलिए गर्भकाल में माताओं को
भागवत कथा श्रवण करना चाहिए। परमवीर
अभिमन्यु,भक्त प्रहलाद आदि को गर्भ काल में ही
धार्मिक संस्कार मिले थे । ऐसे बालक मात्ता-पिता
के आध्यात्मिक संस्कारो से ओत्त-प्रोत होते हैं ।
बालक में जन्म के बाद ही ज्ञान की वृद्धि होती हे ।
संस्कारवान व्यक्ति ही नर से नारायण बन
सकता है । संसार में रहना और जीने-मरने की
कला को सीखना चाहिए । इसीसे अगला जन्म
सुखद हो सकेगा । इसलिये आँखों देखि बात पर
ही विश्वास करना चाहिये।जब तक हम परमात्मा
के विषय में केवल सुनते रहते है तब तक संसार को
सत्य मानते है और जब सत्य स्वरूप परमात्मा का
साक्षात्कार कर लेते है तो संसार असत्य लगने
लगता है।
ब्रह्म दृष्टि से संभव है रामदर्शन
ब्रह्म दृष्टि से संभव है रामदर्शन
मानव शरीर "कायानगर" है । शरीर मैं
भी कई शहर ,कस्बे,गाँव बसे हुए हैं । पंचभूतों से
निर्मित्त शरीर में पंचभूतो को वश में करने के लिए
राम नाम जाप की अावश्यकता है । ब्रह्म दृष्टि के
अभाव में चलता -फिरता मनुष्य भी अंधे के
समान है। ब्रह्म दृष्टि से ही राम को देखा जा
सकता है । मनुष्य के शरीर के भीतर बसी दुनिया
को वह शराब,पान,तम्बाकू , गुटखे आदि का सेवन
कर उसे प्रदूषित कर रहा है । इसी भांति
राग-द्वेष,वैर-विरोध,तनाव,ईर्ष्या आदि भावनात्मक
प्रदूषण के कारण शरीर अनेक रोगों से जकड़
रहा है । जिस प्रकार अपराधी की अपील पर
राष्ट्रपति चाहे तो उसका अपराध क्षमा कर सकते
हैं उसी प्रकार राम नाम का निरन्तर स्मरण करने
पर रामजी भी प्रसन्न होकर व्यक्ति के सारे
पाप-अपराध क्षमा कर सकते हैं । व्यक्ति को ध्यान
रखना चाहिए कि वह खाली हाथ अाता है और
खाली हाथ ही जाता है ।
भी कई शहर ,कस्बे,गाँव बसे हुए हैं । पंचभूतों से
निर्मित्त शरीर में पंचभूतो को वश में करने के लिए
राम नाम जाप की अावश्यकता है । ब्रह्म दृष्टि के
अभाव में चलता -फिरता मनुष्य भी अंधे के
समान है। ब्रह्म दृष्टि से ही राम को देखा जा
सकता है । मनुष्य के शरीर के भीतर बसी दुनिया
को वह शराब,पान,तम्बाकू , गुटखे आदि का सेवन
कर उसे प्रदूषित कर रहा है । इसी भांति
राग-द्वेष,वैर-विरोध,तनाव,ईर्ष्या आदि भावनात्मक
प्रदूषण के कारण शरीर अनेक रोगों से जकड़
रहा है । जिस प्रकार अपराधी की अपील पर
राष्ट्रपति चाहे तो उसका अपराध क्षमा कर सकते
हैं उसी प्रकार राम नाम का निरन्तर स्मरण करने
पर रामजी भी प्रसन्न होकर व्यक्ति के सारे
पाप-अपराध क्षमा कर सकते हैं । व्यक्ति को ध्यान
रखना चाहिए कि वह खाली हाथ अाता है और
खाली हाथ ही जाता है ।
हम ईश्वर के ऋणी है
हम ईश्वर के ऋणी है
ईश्वर ने हमें मानव शरीर दिया है,
इसलिए हम ईश्वर के कर्जदार हैं । मनुष्य अपनी
आत्मा परमात्मा को समर्पित कर इस कर्ज को
चुकाएँ । इसलिए ईश्वर तक पहुंच रखने वाले
महापुरुषों की संगति करनी चाहिए। हमारा देश
आध्यात्मिक दृष्टि से सुसमृद्ध राष्ट्र है । अनेक
विदेशी हमलावर शासकों ने भारतीय आध्यात्मिकता
को चोट पहुंचाई ,लेकिन महापुरुषों ने इसे बचाया
है । ईश्वर से साक्षात्कार करना कोई कहानी या
घटना नहीं कहलाती वह तो दिव्य सम्बन्ध होता
है । इसी दिव्य सम्बन्थ से दिव्य आनन्द की प्राप्ति
होती है ।
मन भी अपना-पराया होता से । व्यक्ति
को पाप कर्मों से रोकने वाला मन निज मन तथा
अपराध के लिए प्रेरित करने वाला मन पराया मन
कहलाता है । मन गोपनीय है, इसलिए वह
ताकतवर भी है। परमात्मा भी गोपनीय है,इसलिए
वह दिव्यमान,वर्तमान और सर्वशक्तिमान है ।
इसलिए हम ईश्वर के कर्जदार हैं । मनुष्य अपनी
आत्मा परमात्मा को समर्पित कर इस कर्ज को
चुकाएँ । इसलिए ईश्वर तक पहुंच रखने वाले
महापुरुषों की संगति करनी चाहिए। हमारा देश
आध्यात्मिक दृष्टि से सुसमृद्ध राष्ट्र है । अनेक
विदेशी हमलावर शासकों ने भारतीय आध्यात्मिकता
को चोट पहुंचाई ,लेकिन महापुरुषों ने इसे बचाया
है । ईश्वर से साक्षात्कार करना कोई कहानी या
घटना नहीं कहलाती वह तो दिव्य सम्बन्ध होता
है । इसी दिव्य सम्बन्थ से दिव्य आनन्द की प्राप्ति
होती है ।
मन भी अपना-पराया होता से । व्यक्ति
को पाप कर्मों से रोकने वाला मन निज मन तथा
अपराध के लिए प्रेरित करने वाला मन पराया मन
कहलाता है । मन गोपनीय है, इसलिए वह
ताकतवर भी है। परमात्मा भी गोपनीय है,इसलिए
वह दिव्यमान,वर्तमान और सर्वशक्तिमान है ।
आंतरिक शत्रुओ को जितना ही शूरवीरता है
आंतरिक शत्रुओ को जितना ही शूरवीरता है
संसार में सबसे बड़ी समस्या जन्म -
मृत्यु की है । यह प्रक्रिया आध्यात्मिक पथ पर
सबसे बड़ा अवरोध है । शास्त्रो में जन्म-मृत्यु रुपी
अवरोधों को हटाने की प्रक्रिया बताईं गई है।
शास्त्रों का ज्ञान ओर गुरुजनों की आज्ञा सर्वोपरि
है । इनके प्रति आस्था रखने पर ही व्यक्ति
परमात्मा के साथ जुड़ने का पुण्य प्राप्त करता है ।
व्यक्ति को स्वयं की बुरी आदतों से घृणा करनी
चाहिए । अपने बुरे लक्ष्णों को लड़कर भगा देना
सच्ची आध्यात्मिक शूरवीरता है ।
मृत्यु की है । यह प्रक्रिया आध्यात्मिक पथ पर
सबसे बड़ा अवरोध है । शास्त्रो में जन्म-मृत्यु रुपी
अवरोधों को हटाने की प्रक्रिया बताईं गई है।
शास्त्रों का ज्ञान ओर गुरुजनों की आज्ञा सर्वोपरि
है । इनके प्रति आस्था रखने पर ही व्यक्ति
परमात्मा के साथ जुड़ने का पुण्य प्राप्त करता है ।
व्यक्ति को स्वयं की बुरी आदतों से घृणा करनी
चाहिए । अपने बुरे लक्ष्णों को लड़कर भगा देना
सच्ची आध्यात्मिक शूरवीरता है ।
आध्यात्मिक पथ पर चलना कठिन
नहीं है, इसके लिए हमारे मन में दृढ़ निश्चय
और लगन का होना आवश्यक है । मनुष्य मूल्य
देकर तम्बाकू,गुटका,शराब और भांग आदि दुर्व्यसनों को
खरीदता है। काम, क्रोध ,मोह ,माया, ममता ये सभी
हमारे आंतरिक दुश्मन है।जबकि राम नाम का
कोई मूल्य नही। इसके स्मरण से मुक्ति मिलती है।
फिर भी राम नाम के ग्राहक कम है।
नहीं है, इसके लिए हमारे मन में दृढ़ निश्चय
और लगन का होना आवश्यक है । मनुष्य मूल्य
देकर तम्बाकू,गुटका,शराब और भांग आदि दुर्व्यसनों को
खरीदता है। काम, क्रोध ,मोह ,माया, ममता ये सभी
हमारे आंतरिक दुश्मन है।जबकि राम नाम का
कोई मूल्य नही। इसके स्मरण से मुक्ति मिलती है।
फिर भी राम नाम के ग्राहक कम है।
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