31. मन ही बन्धन व मोक्ष का कारण है :
यह संसार असार है तथा मानव शरीर भी क्षण भंगुर है। मृत्यु के समय मनुष्य का परिवार एवं धन साथ नही चलते हैं केवल उसका धर्म व सत्कर्म ही साथ जाते है फिर भी मनुषय अज्ञानवश विषयो व सुखों के पीछे भागता रहता है । सांसारिक वातावरण से प्रभवित होने के कारण संसार एवं सांसारिक नाशवान प्रदार्थो के अतिरिक्त अन्य कही भी परम आनंद की प्राप्ति का प्रयत्न नही करता है। आनंद प्राप्ति का सत्य स्त्रोत एक परमात्मा ही है जो श्रोत्रिय बाह्मनिष्ठ महापुरूषो के सत्संग व उनकी कृपा माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है । शास्त्रों में मन को ही इस जीव के बन्धन व मोक्ष का कारण माना गया है। जब मन इन सांसारिक विषय वासना में आसक्त हो जाता है तब वह बन्धन का कारण बनता है ओर जब यही मन ईश्वर भगति में लीन हो जाता है तब वह मोक्ष का कारण बन जाता है अतः मन ही मोक्ष व बन्धन का कारण है ।
मनः एवं मनुष्याणं कारण बन्धनमोक्षयो:
सागर के बिखरे मोती
रेण पीठाधीश्वर " श्री हरिनारायण जी शास्त्री "
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