33. आसक्ति युक्त जीवन ही बन्धन है:
इस जीवन एवं संसार मे सर्वाधिक महत्व ईश्वर का ही है । ईश्वर (*राम*) सर्वसक्तिमान सर्वज्ञ एवं सर्वत्र होने से वह अलौकिक है । सर्वगुण सम्पन होने के कारण ईश्वर का प्रभुत्व ही सर्व विदित है अतः सर्व शक्तिमान प्रभु का स्मरण करना ही जीवन का लाभ है । मानव राम ( ईश्वर ) नाम का स्मरण करके तथा मानव मात्र में ईश्वर की सत्ता समझकर अपना जीवन सार्थक कर सकता है । सत्य, सदाचार, दान दक्षिणा, सेवा सत्कार तथा सबको सुख पहुचाने वाले शुभ कार्य करके ही मनुष्य उस परम तत्व परमात्मा को प्राप्त कर सकता है । परमात्मा के स्वरूप को जानने से ही उसमें अनुराग उत्पन होता है । संतो के सत्संग से ही हम ईश्वर को जानने में सफल हो सकते है । प्रदार्थ के सदुपयोग का नाम ही योग है और इनके दुरुपयोग को ही रोग कहते है । इसलिए प्रभु प्रदत प्रदार्थो ( रुपये वस्तु आदि ) को अभावग्रस्त लोगों तक पहुँचा कर उनकी सेवा कर उन्हें सुख पहुंचाना सदुपयोग है । सांसारिक वस्तुएं बुरी नही होती है परन्तु जब मानव उनको अपनी मानकर असक्तिपूर्ण भोग बुद्धि से भोगता है तब वे बन्धन का कारण बन जाती है और यदि मानव अनासक्त भाव से वस्तुओं का उपभोग करता है तो उसे मुक्त ही कहना चाहिये । अतः आसक्ति युक्त जीवन ही बंधन है ।
जन दरिया गुरूदेव जी सब विधि दई बताय।
जो चाहो निज धाम को सांस उसांसो धयाय।।
जन दरिया गुरूदेव जी सब विधि दई बताय।
जो चाहो निज धाम को सांस उसांसो धयाय।।
"सागर के बिखरे मोती"
*रेण पीठाधीश्वर " श्री हरिनारायण जी शास्त्री "*
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