32. सावधान होना ही जागना है :
अनादि ऋषियों, मुनियों द्वारा प्रदत्त ज्ञान ( वेद भगवान के आदेश ) को आलोकित ओर विलोकित करके सांसारिक मोह माया को त्याग कर अविलं सावधानी पूर्वक परमात्मा तत्व को ही स्वीकार करना चाहिए । यह शरीर क्षण विध्वशी है अतः अतिशीघ्र चेत कर ईश्वर भजन में मन लगाने से ही जीव चेतन्य तत्व को प्राप्त कर सकता है क्योंकि यह जीव ( अन्त करन अविच्छिन्न चेतन्य ) एक मेहमान के समान है । न जाने यह इस तन धन को त्याग कर कब परलोक सिधार जाय । जितने भी सांसारिक संबंध है वे सब मिथ्या है , क्षण स्थाई है ,इनसे सावधान होना ही जीवन मे जागना है। इस प्रतिभसिक संसार मे भगवान का नाम ही सत्य है । संसार तो मृगमरीचिका ( मृगतृष्णा ) के समान मिथ्या हव । सोत्रीय ब्रह्मनिष्ठ महापुरूषो का सत्संग करके आत्मज्ञान ( राम भजन ) से ही जीव चैतन्य (सजग ) हो सकता है , अन्यथा यह जड़ के समान ही है । मानव की यह दुर्बलता है कि वह सांसारिक कर्म करने में रुचि लेता है लेकिन ईश्वर भजन को महत्व नही देता है । मरनोउपरांत स्वतः ही ऐहिक लौकिक सर्वसम्पति का त्याग हो जाता है केवल बुरे कर्मो का पाप साथ चलता है अतः ईश्वर स्मरण तथा परोपकार रहित जीवन ही छलना व मिथ्या है इसलिए सभी शास्त्र संत वास्तविक पवित्र सुखी जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा दे रहे है । अतः सत्संग के प्रभाव से ईश्वर स्मरण करना ही जीवन मे सावधान होकर जगाना है ।
दरिया साँचा राम है,फिर साँचा है संत ।
वह तो दाता मुक्ति का,वह मुख राम कहन्त।।
वह तो दाता मुक्ति का,वह मुख राम कहन्त।।
माया खायो सकल जग,सक्यो न कोई भाग।
उबरया कोई संत जन राम भजन लिव लाग।।
उबरया कोई संत जन राम भजन लिव लाग।।
सागर के बिखरे मोती
रेणपीठाधीश्वर *" श्री हरिनारायण जी शास्त्री "*
रेणपीठाधीश्वर *" श्री हरिनारायण जी शास्त्री "*
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