Friday 4 August 2017

10. ईश्वर कृपा के प्रभाव को मनाना ही उसके स्वरूप को जानना है:

10. ईश्वर कृपा के प्रभाव को मनाना ही उसके स्वरूप को जानना है:
जो मनुष्य सुख दुख रूप प्राप्त परिस्तिथियों में सुख से हर्षित नही होता है तथा दुख से भयभीत नही होता है; दोनों ही परिस्तिथियों को ईश्वर का प्रसाद (वरदान)मानकर प्रसन्न रहता है, ऐसा सम दृष्टि साधक जीवन मुक्त हटाना माना गया है। वह इस संसार मे भाग्यशाली है । ईश्वर बहुत दयालु है। पापी से पापी एवं अत्याचारी से अत्याचारी भी यदि ईश्वर की शरण मे पहुँचकर अपने अपराधों की क्षमा याचना करके भविष्य में अपराध न करने की शपथ ले लेता है तो भगवान उसके अपराधों को क्षमा करके उसे साधु रूप में स्वीकार कर अपना लेते है और शीघ्र ही उसके कल्याण करने की घोषणा कर देते है लेकिन खेद है कि  यदि अज्ञानी मानव कल्यानवरुणालय दयालु राम की शरण मे नही जाता तो यह उसका दुर्भाग्य ही कहा जायेगा लेकिन *यह दुर्भाग्य सतगुरु की कृपा से सौभाग्य में बदला जा सकता है*। सतगुरु ही दयालु राम की महिमा बताकर उसे दयालु राम की शरण मे पहुँच कर सुखी बना सकता है । अतः ईश्वर कृपा के प्रभाव को मनाना ही उनके स्वरूप को जानना है ।
*दरिया गुरु गरुवा मिला,कर्म किया सब रद्द। झूठा भ्रम छुड़ाय कर ,पकड़ाया सत शब्द।।*
*"सागर के बिखरे मोती"*
*रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"*
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