Tuesday 22 August 2017

21. सुख और दुख के स्वरूप को जानना ही सच्चा ज्ञान है

21. सुख और दुख के स्वरूप को जानना ही सच्चा ज्ञान है ।*
सुख और दुख मन का धर्म (स्वभाव) है । मानव अनादि काल से दुख की समस्या का समाधान पाने के लिये उपाय सोचता रहता है । निरन्तर सुख की चाहना मनुष्य का सहज स्वभाव है । वह सुख को शाशवत बना कर उसे अपने पास रखना चाहता है ।लेकिन दुख को एक क्षण के लिए भी नही चाहता है परन्तु उसकी यह इच्छा कभी पूरी नही होती है । इस असंभव को सम्भव बनाने के प्रयास में वह जीवन के अंतिम क्षण तक झुझता है सुख की मात्रा ओर स्थायित्व दोनों के प्रति व्यक्ति के मन मे मोह है । वैज्ञानिक भौतिक विज्ञान के द्वारा इस समस्या के समाधान में लगे हुए है । किंतु भारतीय संस्कृति चितन इसे स्वीकार नही करता है । भारतीय चिंतन ने सुख दुख को समस्याओं का सम्बंध मानव के मन से माना है  क्योकि उनकी दृष्टि से सुख और दुख का मूल केंद्र मनुष्य का अपना मन ही है । बाहरी साधन तो केवल थोड़ा संतोष प्रदान कर सकते है । नित्य जीव से अनित्य शरीर से संबंध जोड़कर दुख की सृष्टि की है अतः इस जीव ने परमात्मा तत्व में विलीन होकर तादात्मय भाव स्थापित कर लेने से ही सुख की उपलब्धि हो सकती है इस तरह सूख ओर दुख के स्वरूप को समझ लेना ही सच्चा ज्ञान है ।
*जीव जात से बिछुड़ा , धर पंच तत्व का भेष।दरिया निज धर आइया, पाया ब्राह्म अलेख।।*
*"मनः एव मनुष्याणं कारणः बन्ध मोक्षयोः"*
"सागर के बिखरे मोती"
रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"

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