Sunday 20 August 2017

11. सगुण राम की सुलभता

11. सगुण राम की सुलभता :
निराकार(अमूर्त) ईश्वर को मानने वाला योगी परमात्मा में तथा स्वयं के अभेदभाव अनुभव करने के कारण सर्वत्र ब्रह्म का साक्षात्कार करने लगता है अतः उसे किसी मूर्ति अथवा किसी प्रतीक की स्थूल उपकरणों से पूजा करने की कोई अपेक्षा आवश्यकता नही रहती है । उस तत्त्वज्ञ भक्त की प्रत्येक क्रिया ही पूजा है,वह मस्ती में पुकार उठता है, *है प्रभु! "यह शरीर आपका मन्दिर है,इसमें आत्मा के रूप में आप निवास करते हैं,* मेरा चलना ही परिक्रमा है,मुख से निकलने वाली प्रत्येक वाणी ही स्त्रोत का पाठ है,निद्रा ही समाधि की स्थति है,इस तरह में जितने भी कर्म करता हूं वे सब आपकी आराधना है ।
सगुण राम की उपासना सरल है । *ईश्वर गाय के सदृश है। भक्त बछड़ा बन कर उनका कृपारूपी दूध निकलता है तब बछड़े के माध्यम से वो दूध अन्य लोगो को भी प्राप्त हो जाता है।*निराकारी भक्त ब्रह्म के अस्तित्व के ज्ञान विस्तार द्वारा अपने को भले ही संतुष्ट कर दे किन्तु मानवीय जीवन की समस्याओं का समाधान पाने के लिये राम की करुणा को द्रवित करना होगा । *भक्त अपने भाव वत्स के द्वारा राम का कृपारूपी दूध पाने में सफल हो जाता है।* ब्रह्म निर्गुण से सर्गुण होकर ही भक्त की समस्यओं का समग्र समाधान करता है अतः निर्गुण की अपेक्षा सर्गुण सुलभ है।
*जन्म मरण सु रहित  है,खण्डे नही अखण्ड।*
*जन दरिया भज रामजी,जिन्हा रची ब्रहाण्ड।।*
*दरिया निरगुण नाम है, सरगुण  सतगुरु देव ।*
*ये सुमरावे राम को, वो है अलख अभेव।।*
*"सागर के बिखरे मोती"*
*रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"*

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