Sunday 20 August 2017

15. सत्पुरुषों की उपासना से ही माया बन्धन टूटता है ।

15. सत्पुरुषों की उपासना से ही माया बन्धन टूटता है ।*
अज्ञानी मानव सांसारिक सुख-दुख आदि द्वन्दों में रमण करता है । वह यह बात बिल्कुल भूल गया कि ईश्वर ही उसके सच्चे प्रेमास्पद  है । जैसे कोई अनजान मनुष्य जल के लिऐ तालाब पर जाय और उसे उसी से पैदा हुए सिवार आदि घासों से आच्छादित(ढका हुआ) देख कर यह समझ ले कि यहाँ जल नही  है लेकिन सूर्य की किरणों से झूठ मुठ प्रतीत होने वाले जल के लिये मृग तृष्णा की ओर दौड़ पड़े वैसे ही मनुष्य ईश्वर की माया से छिपे रहने से ईश्वर को छोड़कर सुख कि आशा में सांसारिक विषयो में भटक रहा है । स्वपन में दिखने वाले जूठे प्रदार्थ के समान झूठे देह गेह ,पत्नी,पुत्र,धन और स्वजन आदि को सत्य समझ कर इन्ही के मोह में फसा हुआ है । जब जीवन के अंतिम दिनों में जीव का संसार से मुक्त होने का समय आता है तब इस अपरिहाय परिस्थिति में विवेकशील मनुष्य सत्पुरुषों की उपासना , उनका सानिध्य करने लग जाता हैं । जिससे उनकी चित्तवृत्ति सुध होकर ईश्वर में लग जाती है इस प्रकार सत्पुरुषों की उपासना से ही माया का बंधन टूटता है ।
मूढ़ काग समझे नही, मोह माया सेवे। 
चुन चुगावें कोयली, अपना कर लेवे।।

जतन जतन कर जोड़ ही दरिया हित चित्त लाय ।
 माया संग न चाल ही ,जावे नर छिटकाय।।
*सागर के बिखरे मोती*
*रेण पीठाधीश्वर श्री हरिनारायण जी शास्त्री*

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