Sunday 20 August 2017

18. साधना से भगवत्कृपा का दर्शन

18. साधना से भगवत्कृपा का दर्शन*
साधना भगति कभी भी निष्फल(व्यर्थ) नही होती है । साधक को भगति ओर भगवान को प्राप्त करने के लिये सदा ही ततपर रहना चाहिए । साधना को प्राणवत्त समझ कर साधना उपासना करने वाला व्यक्ति कभी भी अपने उद्देश्य राम स्मरण से विमुख नही होना चाहता । प्यासा आदमी जल की खोज करेगा और तबतक उसकी यह प्रकिया चलती रहेगी जब तक कि वह जल को प्राप्त नही कर लेता । सच्चे साधक की भी स्थति इसी प्रकार की होती है । प्रभु दीन बंधु करुणा निधान है । व्यक्ति छल कपट ओर झंझाल को त्याग कर जब भगति में लग जाता है । तभी उसे ईश्वर की आकाश करुणा को ज्ञान होता है तथा साधना राम स्मरण के महत्व को स्वीकार करता है पुरुषार्थ की सीमा तक साधना करने पर ही व्यक्ति में नम्रता का उदय होता है और तभी वह भागवत कृपा का अधिकारी बनता है । प्रभु पग पग पर भगत की साधना को सम्मान देते है अतः साधना से ही भगवत्कृपा का दर्शन होता है ।
*दरिया धन वे साधना, रहे राम लो लाय।*
*राम नाम बिन जीव को, काल निरन्तर खाय।।*
"सागर के बिखरे मोती"
रेण पीठाधीश्वर श्री हरिनारायण जी शास्त्री

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