Monday 28 August 2017

26. यह मनुष्य शरीर मुक्ति का खुला द्वार है

26. यह मनुष्य शरीर मुक्ति का खुला द्वार है
अज्ञानी मनुष्य ममता वश अपने कुटुम्ब के भरण पोषण में ही सारी सुध-बुध खो बैठता है इसलिये उसे कभी भी शान्ति नही मिल सकती है यह मनुष्य शरीर मुक्ति का खुला हुआ द्वार है । मुक्ति के इस सुसाधन को पाकर भी जो मानव अपने जीवन के उद्देश्यो को भूलकर केवल अपनी घर गृहस्थी में फंसा रहता है वास्तव में वह बहुत ऊंचे तक चढ़ कर नीचे गिर रहा है । जो मनुष्य ईश्वर स्मरण व शुभ कार्य नही करते है केवल कौटुम्बिक ममता के कारण अहनिश अत्यन्त कठोर परिश्रम करके गृह ,पुत्र,मित्र ओर धन सम्पति संचय में संलग्न रहते है ,उन्हें अन्त में ये सब छोड़ देना पड़ता है तथा न चाहने पर भी विवश होकर घोर नरक में जाना पड़ता है । मनुष्य शरीर है तो अनित्य ही , मृत्यु इसके पीछे लगी रहती है परन्तु निस्पर्श जीवन से इसी परम साधन शरीर से परम पुरुषार्थ की प्राप्ति हो सकती है। अनेक जन्मों के बाद ये अत्यंत दुर्लभ मनुष्य शरीर पाकर बुद्धिमान मनुष्य को शीघ्र अति शीघ्र मृत्यु से पूर्व ही मोक्ष प्राप्ति का प्रयत्न कर लेना चाहिये । विषय भोग तो सभी योनियों में प्राप्त हो सकते है इसलिए भोगों के संग्रह में अमूल्य जीवन नही खोना चाहिये । इसप्रकार इस मनुष्य जीवन का मूल उद्देश्य मोक्ष ही है ।
" नाम बिन भरम करम नही छूटे "
जन दरिया अरपे दे आप,जरा रे मरण तब छूटे।
" सागर के बिखरे मोती "
रेण पीठाधीश्वर  " श्री  हरिनारायण जी शास्त्री "

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