Sunday, 20 August 2017

16. अनुकुलता-प्रतिकूलता में सम रहना ही सुखी होना है।

16. अनुकुलता-प्रतिकूलता में सम रहना ही सुखी होना है।
आंखों से अंधा मानव अंधा नही है  किन्तु आंखे होते हुए भी जो मनुष्य काम ,क्रोध ,लोभ,मोह,मद की पट्टी के बंधन में आ जाता है वही अंधा है । जिनकी आंखों को लोभ,मोह,धन,वैभव ने बन्दी बना कर घेर लिया है वही धृतराष्ट्र है । अन्त काल मे धन,पैसा परिवार कोई भी साथ नही जाता है फिर भी मनुष्य इनके पीछे पीछे भगता रहता है । भौतिक प्रदार्थो का त्याग कर कही भी आनंद ढूंढने का प्रयास नही करता है । मनुष्य बड़े बड़े मनोरथों के पूल बंधता रहता है परन्तु वह यह जनता है कि देव(प्रारब्ध)ने इसे पहले ही नष्ट कर रखा है । यही कारण हे कि जब कभी प्रारब्ध के अनुकुल होने पर प्रयत्न सफल हो जाता है तो वह हर्ष से फूल उठता है तथा प्रारब्ध के प्रतिकूल होने पर जब विफल हो जाता है तो शोक ग्रस्त हो जाता है । मनुष्य को चाहिए कि चाहे सफलता मिले या विफलता ; दोनों के प्रति सम भाव रखकर अपना कर्तव्य कर्म करता रहे । फल प्रयत्न से नही देव प्ररेणा से मिलते है अतः अनुकुलत व प्रतिकूलता में सम रहना है सुखी होना है ।
*त्रिविधं नरकक्सयेदं द्वारं नाशनमात्मनः । कामः क्रोधस्तथालोभ , तसमदेतम त्रयं तयजेतम ।।*
सागर के बिखरे मोती
*रेण पीठाधीश्वर श्री हरिनारायण जी शास्त्री

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