17. निष्काम कर्म करने वाला ही योगी है:*
भगति ओर कर्म में अंतर नही है । ईश्वर को प्रसन्न करने के लिये किया गया कर्म ही भगति है लेकिन इस कर्म में स्वयं के लिए आसक्ति न हो। जो मनुष्य ईश्वर का चिन्तन करता हुआ कर्म करता है उसकी प्रत्येक क्रिया ईश्वर भगति ही कही जायेगी। सभी कर्म ईश्वर के अर्पण करने से मानव पाप रहित होकर कर्मो से स्वतंत्र होने लगता है। जो व्यक्ति कर्म फल ईश्वर के अर्पण करता है तो भगवान उसे अनन्त गुणा बना कर वापस दे देते है । व्यक्ति की प्रतियेक प्रवत्ति ईश्वर के साथ जुड़ी रहनी चाहिए । गृहस्थ चलाने हेतु नोकरी धंधा कुछ न कुछ साधन करना ही पड़ता है
परन्तु साथ ही साथ ईश्वर संबंध बनाए रखने से हृदय में पुनः निष्कामना आ जाती है इस तरह गृहस्थ पारिवारिक बंधनो का ज्ञान हो जाने से उसमे अनासक्त जीवन का परम लाभ प्राप्त होने लग जाता है। इन आचरणों गुणों से युक्त व्यक्ति सभी प्रकार के कर्म बंधनों से स्वतंत्र होकर परम सुख का अनुभव करता है । ऐसा पवित्र जीवन जीने वाला सद्गृहस्थ घर बैठा ही योगी है अतः निष्काम कर्म करने वाला भी योगी है ।
परन्तु साथ ही साथ ईश्वर संबंध बनाए रखने से हृदय में पुनः निष्कामना आ जाती है इस तरह गृहस्थ पारिवारिक बंधनो का ज्ञान हो जाने से उसमे अनासक्त जीवन का परम लाभ प्राप्त होने लग जाता है। इन आचरणों गुणों से युक्त व्यक्ति सभी प्रकार के कर्म बंधनों से स्वतंत्र होकर परम सुख का अनुभव करता है । ऐसा पवित्र जीवन जीने वाला सद्गृहस्थ घर बैठा ही योगी है अतः निष्काम कर्म करने वाला भी योगी है ।
*कर्मनियवधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन*
*हाथ काम मुख राम है हिरदे सांची प्रीत।*
*जन दरिया गृही साध की , यहि उत्तम रीत।।*
*जन दरिया गृही साध की , यहि उत्तम रीत।।*
*"सागर के बिखरे मोती"*
*रेण पीठाधीश्वर श्री हरिनारायण जी शास्त्री*
*रेण पीठाधीश्वर श्री हरिनारायण जी शास्त्री*
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