12. इन्द्रियो को वश में करना ही सुखी होना है :*
संसार के सभी अभीपिस्त प्रिय विषय मनुष्य की कामनाओं को कभी भी पूर्ण करने में समर्थ नही है । इसलिए जो कुछ प्रारब्ध से मिल जाय उसी से संतुष्ट होकर रहने वाला पुरुष अपना जीवन सुख से व्यतीत करता है परन्तु अपनी इन्द्रियों को वश में नही रखने वाला तीनो लोकों का राज्य पाने पर भी दुखी रहता है क्योंकि उसके हृदय-मन में तृष्णा की आग धधकती रहती है । इंद्रियों के भोगों से संतुष्ट न होना ही जीव के जन्म मृत्यु के चक्कर मे गिरने का प्रमुख कारण है । जो कुछ प्राप्त हो जाय उसी में खुश होना ही मुक्ति का कारण है अतः इंद्रियों को वश में रखना ही सुखी होना है ।
*"दरिया मन को फेरिये , जामे बसे विकार"*
*"दरिया मन को फेरिये , जामे बसे विकार"*
*"सागर के बिखरे मोती"*
*रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"*
*रेण पीठाधीश्वर "श्री हरिनारायण जी शास्त्री"*
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