Tuesday 22 August 2017

22 . महापुरुष दर्शन मात्र से ही पवित्र करते है

22 . महापुरुष दर्शन मात्र से ही पवित्र करते है
इस संसार मे शरीर को जन्म देने वाले माता पिता प्रथम गुरु है । इस के बाद उपनयन संस्कार विद्या अध्यन करवा कर सत्कर्मो  की शिक्षा देने वाला दूसरा गुरु है तदन्तर आध्यात्मिक क्षेत्र में ज्ञान उपदेश करके ईश्वर को प्राप्त करने वाला तीसरा गुरु है । तीसरा गुरु तो परमात्मा का हि स्वरूप होता है । स्वयं भगवान ही सतगुरू कर रूप में है , ऐसा पवित्र भाव ही शिष्य को उन्नति प्रदान कर मोक्ष का कारण बनता है ,केवल जलमय तीर्थ ही तीर्थ नही कहलाते है । और केवल मिटी या पत्थर - प्रस्तर प्रतिमाये ही देवता नही होती है । संत महापुरुष ही वास्तव में तीर्थ ओर देवता है क्योंकि तीर्थ एवं प्रतिमाओं का बहुत समय तक सेवन करने पर ये पवित्र करते है । महापुरुष तो तत्काल दर्शन मात्र से पवित्र कर देते है । अग्नि सूर्य चंद्रमा आदि देवताओं की उपशना करने पर भी ये पाप का पूरा पूरा नाश नही कर सकते ,क्योकि उपासना से भेद बुद्धि जा नाश नही होता वह तो ओर भी बढ़ती है । परंतु घड़ी दो घड़ी भी ज्ञानी महापुरूषो की सेवा की जाय तो वे सारे पाप मिटा देते है  क्योकि वे आध्यात्मिक ज्ञान सत्संग के द्वारा भेद बुद्धि का नाश कर देते  है । गुरु के कर्ज से मुक्त हाने के लिए सत शिष्यों के इतना ही कर्तव्य है कि वे विशुद्ध भाव से गुरु की आज्ञा का पालन कर अपना सब कुछ गुरुदेव की सेवा में समर्पित कर देते है ।
*गुरु गोविंद दोनों खड़े काके लागू पाय बलिहारी गुरु देव की गोविंद दियो बताया।।*
*दरिया सतगुरु भेटिया जा दिन सनाथ। श्रवणा सब्द सुनाय के मस्तक दीना हाथ ।।*
*"सागर के बिखरे मोती "*
*रेण पीठाधीश्वर " श्री हरिनारायण जी शास्त्री "*

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