Tuesday 22 August 2017

24. समाज की सेवा करना ही पद का सदुपयोग करना है

24. समाज की सेवा करना ही पद का सदुपयोग करना है
जब किसी धार्मिक,सामाजिक एवं राजनेतिक नेता को समाज द्वारा उच्च पद एवं अधिकार प्रदान कर दिया जाता है तब उसका कर्तव्य हो जाता है कि वह समाज की भावनाओ का आदर करते हुए विनम्रता से अपना जीवन समाज के कल्याण के लिए समर्पित कर दे लेकिन यदि वह पद में दीन सामान्य जनता व विशिष्ठ लोगों की  भावना का तिरस्कार करके अपने पद को अन्याय अत्याचार पूर्वक बचाये रखना चाहता है, तथा आने दुराग्रह के कारण लाखो निरपराध लोगों के खून से होली खेलने में भी गर्व अनुभव करता है तो उसका यह पद निरर्थक है क्योंकि पद का सदूपयोग तो प्राणी मात्र की सेवा करके उन्हें प्रसन्न रखने में है।
*"सागर के बिखरे मोती"*
*रेण पीठाधीश्वर " श्री हरिनारायण जी शास्त्री"*

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