Monday 28 August 2017

29 . शरीर के सदुपयोग से मोक्ष - लाभ ( मोक्ष -प्राप्ति )

29 . शरीर के सदुपयोग से मोक्ष - लाभ ( मोक्ष -प्राप्ति )
देव दुर्लभ मानव शरीर की महिमा केवल इसके सदुपयोग से ही  है । शरीर का सदुपयोग करने से मानव जीवन का परम लाभ ईश्वर प्राप्ति - मोक्ष है । वास्तव में हानि एवं लाभ ये दो ही मानव शरीर के विशेष पक्ष है तथा ये दोनों ही पक्ष शरीर के सदुपयोग एवं दुरुपयोग पर आश्रित है । मानव के निम्न आचरण उसके सदुपयोग पक्ष को घोतित करते है , जैसे राम भजन,ध्यान ,सत्संग, महापुरूषो का आदेश पालन, परोपकार ,दीन-दुखियों की सहायता व सेवा करना एवं देशभगति । इन सभी शुभ व पुण्य कर्मों को अपना परम् कर्तव्य समझकर प्राथमिकता के आधार पर इन्हें करने में ही मानव शरीर का महत्व व सदुपयोग है ओर इस प्रकार यह शरीर परम सुख ( मोक्ष ) का दाता बन जाता है । इसके विपरीत मानव का निम्न आचरण उसके दुरुपयोग पक्ष को प्रकट करता है , जैसे दूसरो से घृणा करना , धोखा देना ,तिरस्कार करना ,दुख देना ,दूसरो के अधिकार व धन को हड़पना । इन सभी दुष्यकर्मो से यह शरीर ही मनुष्यो को दुख ( नरक ) दाता बन जाता है । अतः इस देव दुर्लभ मानव शरीर के सदुपयोग से ही मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है ।
राम बिना तोको ठौर नही रे, जह जावे तह काल ।
जन दरिया मन पलट जगत सु , अपना राम सम्भाल।।
"सागर के बिखरे मोती"
रेण पीठाधीश्वर " श्री हरिनारायण जी शास्त्री"

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