28 . इन्द्रियों की सदुपयोगिता ही मानव जीवन का महत्व है
इन्द्रियों की सदुपयोगिता ही स्वर्ग सोपान है । जो वाणी भगवान के गुणों का गान करती है वही सच्ची वाणी है । वे ही हाथ सच्चे हे जो दान-पुण्य व भगवान की सेवा के लिए काम करते है , वही मन सच्चा है जो चराचर प्राणियों में निवास करने वाले ईश्वर का सतत स्मरण करता है और वही कान वास्तव में कान कहलाने के योग्य है जो ईश्वर की सुधामय कथाओं का श्रवण करते है ,वही सिर धन्य सिर है जो चराचर जगत को भगवान की चल अचल प्रतिमा समझ कर नमस्कार करते है,जो सर्वत्र भगवत विग्रह का दर्शन है वे नेत्र वास्तव में सार्थक नेत्र है । शरीर का जो भी अंग भगवान और भगत महापुरुषों की सेवा से अर्पित है वही शरीर इन्द्रिय धन्य है । यदि मानव आसक्ति वश उपरोक्त इंद्रियो द्वारा शास्त्र विपरीत कर्म करता है तो ऐसा व्यक्ति पृथवी पर भार रूप है अतः इन्द्रियों की सदुपयोगिता ही मानव जीवन का महत्व है ।
घर धंधे में पंच मुवा व,आठ पोहर बेकाम।
दरिया मूरख ना कहे , मुख सु कदे न राम ।।
" सागर के बिखरे मोती "
रेण पीठाधीश्वर " श्री हरिनारायण जी शास्त्री "
दरिया मूरख ना कहे , मुख सु कदे न राम ।।
" सागर के बिखरे मोती "
रेण पीठाधीश्वर " श्री हरिनारायण जी शास्त्री "
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